Monday, April 22, 2013

धरमन जान का एक खत बाबू वीर कुंवर सिंह के नाम



बाबू साहेब
आदाब!

आज मेरा मन बहुत बेचैन है. आपको बहुत याद कर रही हूं. याद तो रोज ही करती हूं. हर पल आपकी यादों में ही रहती हूं लेकिन जब-जब आपकी जयंती-पुण्यतिथि जैसे आयोजन आते हैं, आपको ज्यादा ही याद करती हूं. आपसे कोई शिकायत नहीं बाबू साहेब. मैं जब धरती पर थी, तब भी आप ही मेरे दिल के सबसे करीब थे, और आज भी उतनी ही करीब महसूसती हूं आपको. अपनी बेचैनी किसी से साझा नहीं कर सकती, सो आपसे कर रही हूं. आपसे गुजारिश है कि इस पत्र को परेशानी का सबब न बनाइयेगा. मुझे मालूम है कि आप मेरी गुजारिश को स्वीकारते हैं.
बाबू साहेब, आप यह न सोचिएगा कि मैं अपनी पीड़ा व्यक्त कर रही हूं आपसे. बस! जब-जब आपके नाम का जयगान होता है, आपको महान सेनानी वगैरह बताया जाता है तब क्यों एक बार भी लोगों को मैं याद नहीं आती, यह सवाल कई बार मुझे परेशान करते हैं. आपने तो अपनी जिंदगी में सबको बता दिया था कि मैं आपकी हूं, आप मुझे तन-मन से स्वीकार कर रहे हैं. सिर्फ बताया ही नहीं था आपने, आपने तो अपने शहर आरा में मेरे नाम का एक मकबरा भी बनवा दिया था, ताकि हमारे प्रेम की एक निशानी रहे. भले ही प्रेम की वह निशानी शाहजहां-मुमताज के ताजमहल की तरह मशहूर नहीं हो सका लेकिन आरा में धरमन चैक पर धरमन बाई का मकबरा प्रेम की एक निशानी है, यह कौन नहीं जानता. आप अंग्रेजों से लड़ रहे थे, युद्ध का माहौल था, तब भी आप प्रेम की दुनिया मंे भी डूबे हुए थे. बाबू साहेब, आपने जब मुझसे प्रेम किया तो कभी परवाह नहीं की कि दुनिया क्या सोचेगी, लोग क्या कहेंगे. मैं एक तवायफ थी लेकिन आपने प्रेम किया और बाद में दुनिया के सामने डंके की चोट पर मुझे अद्र्धांगिनी भी बनाया. मैं उस दिन को अब भी बार-बार याद करती हूं, जब आपके पड़ोस के ही एक राजा ने आपको अपमानित करने के लिए मेरे मुजरे का आयोजन करवाया था और अंगरेजों के साथ मिलकर मुजरे के माहौल में आपकी खिल्ली उड़ा रहा था. आप उस भीड़ में अकेले-बेबस-लाचार हो गये थे. मेरा मन बेचैन हो गया था और मैंने ही प्रेम निवेदन किया था आपसे. आपने कहा था कि आपके पास अब कुछ नहीं, मैं बोली थी कि मैं हूं ना. आप कहते थे मुझसे कि नन्हीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए तुमसे, सिर्फ तुम रहो मेरे साथ, मुझे ताकत मिलता है. मुझे बहुत जिद करनी पड़ी थी आपसे कि यह धन-दौलत जो मेरे पास है, वह अब किस काम आएगी, सबको लगा दीजिए अंगरेजों के खिलाफ लड़ने में. बार-बार कहने पर आप माने थे. आप ही का जोश-जुनून देख मैं भी चली गयी थी कि 1857 की लड़ाई में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की तरफ से अंगरेजों से लड़ने. फिर मैं लौट न सकी थी उस युद्ध से. आप भी तो रोज कहते थे कि रोज जीओ नन्हीं, इस युद्ध में जिंदगी का कोई भरोसा नहीं. हर दिन एक नयी जिंदगी जीओ. मैं वैसे ही जिंदगी जी हूं आपके साथ. लेकिन इतने सालों बाद मन में एक कसक रहती है कि जब आपको कोई संकोच नहीं हुआ मुझे स्वीकारने में, मेरे प्रति प्रेम को दर्शाने में तो अब के लोगों को क्यों इतना संकोच होता है, क्यों इतनी शर्म आती है मेरा नाम लेने. क्यों मेरा नाम आते ही मुझे नचनिया-पतुरिया कह, एक दायरे में समेट देते हैं. आप विराट व्यक्तित्व वाले बाबू साहेब, आपके समानांतर खड़ा नहीं होना चाहती लेकिन इतनी उम्मीद तो करती ही हूं कि जो आपके नाम का माला जपते हैं, आपको एक महानायक बताते हैं, आपके नाम के आगे वीर शब्द जोड़ना नहीं भूलते, वे आपको समग्रता में क्यों नहीं स्वीकार पाते. क्यों आपकी नन्हीं यानि मुझे अब भी उसी हिकारत की दृष्टि से देखते हैं. क्यों उन्हें लगता है कि आपके साथ गलती से भी मेरा नाम जुड़ जाएगा तो आपकी बदनामी होगी. आपने तो कभी इसकी परवाह नहीं की थी बाबू साहेब, फिर आज के समय में जब दुनिया एक गांव में मिट रही है, जाति-धर्म का बंधन तोड़ने की बात रोज हो रही है, तब मुझे स्वीकार लेने में क्यों परेशानी होती है लोगों को.
बाबू साहेब, एक बात कहूं. यही एक बात कहने को इस खत को लिख भी रही हूं. आपकी बाते तो अब भी बहुत सुन ली जाएगी, क्योंकि आपको सरकार भी मानती है, लोग भी सम्मान देते हैं. आप किसी तरह समझाइये न लोगांे को कि अगर उन्हें आपके साथ मैं स्वीकार नही ंतो फिर साहस जुटाकर मेरे अस्तित्व को मिटा दे. बदल दे आरा के धरमन चैक का नाम, हटा दे सभी निशानियां. मेरे और मेरी छोटी बहन करमन के नाम पर जो भी निशानियां हैं, सब मिटा दे. बदल दे इतिहास को. मिटा दे वो इबारतें भी जो कहीं न कहीं, किसी न किसी कागज के बंडल में दबी पड़ी हुई है हमारेे साझा इतिहास की.
शायद ज्यादा बोल गयी बाबू साहेब. आपसे ही इतना बोल सकती हूं, इसलिए बोल गयी. आप पर ही इतना अधिकार रहा है मेरा, जहां मैं खुद को खुलकर व्यक्त कर सकती हूं. बाकि बातें फिर करूंगी आपसे, अभी आपको मैं भी आपके जन्मदिन की शुभकामनाएं दे रही हूं. आपको आपके जन्म दिन पर बहुत-बहुत प्यार बाबू साहेब. बहुत-बहुत प्यार...
आप ही की
नन्हीं 

नोटः- यह खत काल्पनिक है. धरमन बाबू वीर कुंवर सिंह की प्रेमिका थी, बाद में पत्नी बनीं. आज वीर कुंवर सिंह के जन्म दिन पर धरमन कुछ कहना चाहती हैं, इसलिए उनकी बातों को व्यक्त करने के लिए काल्पनिक पत्र का सहारा लिया गया है.

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