Thursday, February 17, 2011

नेशनल गेम्स : राष्ट्र कहां है, राज्य कहां है?

अनुपमा
12 फरवरी को दोपहर बारह बजे के बाद से ही लोगो का राजधानी रांची के खेलगांव में पहुंचना शुरुू हुआ. शाम पांच बजे तक लोगों का कारवां हुजूम में बदल गया. देश के कोने-कोने से पहुंचे लगभग छह हजार खिलाड़ी, उनके संग आये लगभग चार हजार खेल प्रशिक्षक व खेल संघों के पदाधिकारी आदि, झारखंड सरकार के पदाधिकारी, नेतागण, खेल प्रेमी. इन सबको मिलाकर करीबन 35 हजार की भीड़ जुटी. मार्च पास्ट हुआ, आकाश से फूल बरसाये गये. झारखंड के राज्यपाल एमओएच फारूख, मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, रांची के सांसद व केंद्रीय पर्यटन मंत्री सुबोधकांत सहाय, झारखंड ओलिंपक संघ के अध्यक्ष आरके आनंद और दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेल से देश भर में किरकिरी के पात्र बने इंडियन ओलिंपिक संघ के प्रमुख सुरेश कलमाड़ी ने उद्घाटन किया. इकलौते केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत को खेल और राष्ट्रीयता पर अपने विचार रखने का मौका नहीं मिल सका. शेष ने अपने विचार रखे. अतीशबाजी हुई. झारखंडी गीत-संगीत की झलक दिखी और उसके बाद शाहरूख खान की कंपनी सिने युग को दिये गये करोड़ों रूपये के सौजन्य से पहुंची अभिनेत्री अमीषा पटेल, समीरा रेड्डी, अभिनेता विवेक ओबेराॅय, गायक सुखविंदर ने जलवा बिख्ेारना शुरू किया. कहो ना प्यार है... गीत पर अमीषा पटेल ने ठुमके लगाये, सुखविंदर ने चक दे इंडिया गीत सुनाये. मौज-मस्ती के इस आलम में यह सवाल उसी समय से हवा में तैरने लगा कि यह कैसा राष्ट्रीय खेल है, जहां राष्ट्र का कोई भी एक प्रमुख व्यक्ति मौजूद नहीं है? न प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, न उपराष्ट्रपति. और न ही केंद्रीय खेल मंत्री. आखिर ऐसा क्यों? क्या झारखंड एक गरीब राज्य है इसलिए? क्या झारखं डमें भारतीय जनता पार्टी की सरकार है इसलिए? क्या सुरेश कलमाड़ी मंच पर पहुंचे थे, इसलिए उनसे बचने के लिए केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन आना उचित नहीं समझे या फिर यह कि झारखं डमें राष्ट्रीय खेल के आयोजकों ने केंद्र के इन आला पदधारियों से गंभीरता से संपर्क ही नहीं किया? 12 फरवरी को सतही तौर पर मौज-मस्ती का आलम था लेकिन अंदर से यह सवाल उद्घाटन समारोह के दौरान ही उठना शुरू हो गया. संस्कृतिकर्मी अश्विनी पंकज लगभग आक्रोशित शब्दों में कहते हैं- राज्य बनने के बाद पहली बार झारखं डमें कोई राष्ट्रीय स्तर का आयोजन हो रहा था. यहां देश भर के खिलाड़ी पहुंचे हैं, झारखं डमें कोई भी नक्सली घटना घट जाने पर, संसाधन में हिस्सेदारी लेने के नाम पर राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ानेवाले केंद्रीय नेताओं को एक बार भी यह नहीं लगा कि गांव-कस्बे से पहुंचे इन खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने के लिए वहां पहुंचना जरूरी है. अश्विनी यह भी पूछते हैं कि क्यों नहीं क्रिकेट के इतर अन्य खेलों के स्टार खिलाड़ी जैसे सानिया मिरजा, अभिनव बिंद्रा जैसे खिलाड़ी भी यहां पहुंचे. क्या किसी निजी कंपनी के सौजन्य से यह आयोजन होता, तो ये सब नहीं पहुंचते? क्या क्रिकेट का आयोजन होता तो भी इतनी अनदेखी की जाती,? ऐसा क्यों हुआ, इसका सही-सही जवाब किसी के पास नहीं है. राज्य के उप मुख्यमंत्री व खेलमंत्री सुदेश महतो तहलका से बातचीत में कहते हैं राज्य के मुख्यमंत्री ने स्वयं खुद दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति को आमंत्रित किया था, क्यों नहीं आये, वे यह नहीं बता सकते. जब यही सवाल राष्ट्रीय खेल के उद्घाटन और समापन समारोह के लिए बनी कमिटी के चेयरमैन आइएएस अधिकारी एनएन सिन्हा से पूछा जाता है तो उनका जवाब होता है- कौन क्यों नहीं आया, यह झारखंड ओलिंपिक संघ वाले आयोजक बतायेंगे. राज्य के मुख्य सचिव एके सिंह का कहना होता है कि बुलाया तो सबको गया था लेकिन सबकी व्यसस्तताएं थीं. खेल की तिथि को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई थी, इसलिए भी बहुत गंभीर पहल नहीं हो सकी.
छह बार की टालमटोल के बाद 33 विभिन्न खेलों के साथ राज्य के रांची, धनबाद, जमशेदपुर के 22 स्टेडियमों में हो रहे 34वें राष्ट्रीय खेल का आयोजन पहले से ही कई किस्म के आरोपों-विवादों से भरा हुआ है. उद्घाटन समारोह के बाद तकनीकी बातों से दूर व्यावहारिक तौर पर भी कई ऐसे सवाल हवा में उछलने लगे हैं. खेल के पहले ही दिन झारखंड को दो स्वर्ण पदक समेत मिले कुछ छह पदकों से संतोष का भाव तो उभरा है लेकिन आयोजन की व्यवस्था को लेकर सवाल बढ़ते ही जा रहे हैं. उद्घाटन समारोह स्थल पर पहले ही दिन कई नलों में पानी का नहीं होना, टाॅयलेट का फ्लैश तक सही नहीं होना तो शिकायतों की फेहरिश्त में है लेकिन जिस तरह से राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व द्वारा नकारे जाने की बात को उठाया जा रहा है, उसी के समानांतर क्षेत्रीय आकांक्षाओं को भी अनदेखी किये जाने की बात भी नाराजगी का सबब बनता जा रहा है. झारखंड की ओर से बाॅरो खिलाड़ियों को बहुतायत में उतारे जाने से तो खेलप्रेमियों के एक बड़े तबके में नाराजगी है ही, उद्घाटन समारोह में जिस तरह से पास वितरण को लेकर बंदरबांट हुई और झारखंड के कई नेताओ की अनदेखी की गयी, वह भी एक सवाल है. राज्य के पूर्व खेल मंत्री बंधु तिर्की कहते हैं कि चंद लोगों ने इस आयोजन को घर में होनेवाले जन्मदिन पार्टी की तरह बना दिया, जिसमें पसंद और नापसंद के हिसाब से मेहमानों को आमंत्रित किया जाता है. तिर्की कहते हैं कि मुझे कोई पास देकर चला गया, इसका मलाल नहीं है लेकिन जो खेलगांव बनने को लेकर विस्थापित हुए लोग हैं, जो खेलगांव के निर्माण में लगे रहे मजदूर हैं, उन्हें तो एक बार की इस भव्यता को देखने का अवसर देना चाहिए था. रांची के उप महापौर अजय नाथ शाहदेव कहते हैं कि मुझे भी पास नहीं मिला लेकिन मैं तो यही सोचकर पहुंचा कि यह राज्य के लिए प्रतिष्ठा की बात है, इसमें सबको साथ देना चाहिए. यह सब कबाड़ा क्यों हुआ, पास वितरण में और लोगों को आमंत्रित करने में भी इतनी चूक कैसे हुई, इसका जवाब राष्ट्रीय खेल के आयोजन से जुड़े राज्य के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सुखदेव सिंह इस तरह देते हैं. वह कहते हैं कि ऐसे कामों का जिम्मा भी जब ब्यूरोक्रैसी के पास रहेगा तो यह होगा ही. राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी अब इस सवाल को लेकर आरटीआई से सूचना मांगने की तैयारी में हैं कि खेल के आयोजन मे पास का वितरण किसे-किसे और कितना-कितना किया गया.
राष्ट्रीय खेल का समापन 26 फरवरी को होना है. अब एक बार फिर से खेल के समापन समारोह में किसी राष्ट्रीय व्यक्तित्व को बुलाकर इसे राष्ट्रीयता का प्रतिक बनाने की कोशिश जारी है. प्रधानमंत्री से समय लेने की कोशिश जारी है, अभी तक आधिकारिक सहमति नहीं मिल सकी है. केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन को भी बुलाने की कोशिश जारी है, ताकि उद्घाटन न सही, समापन में ही उनका भाषण दिलाकर इसकी शान बढ़ायी जाये. ग्लैमर के रंग में यह सवाल आनेवाले दिनों में और भी गंभीर होगा. एक वरिष्ठ पुलिस पदाधिकारी कहते हैं कि झारखंड संवेदनशील राज्य माना जाता है. नक्सलियों का गढ़ भी है. हो सकता है आनेवाले दिनों में नक्सली इस बात को भी समझाते फिरे कि देख लो राष्ट्रीय स्वाभिमान, पहली बार राष्ट्रीय आयोजन में कोई समय देने को तैयार नहीं हुआ? यह पिछड़ा राज्य है इसलिए, आदिवासी राज्य है इसलिए? सवाल तो बाद में और भी उठने हैं जैसा कि भाजपा के पूर्व विधायक सरयू राय कहते हैं- ग्लैमर के नाम पर करोड़ों रुपये बहाये गये, यह पैसा कहां से आयेगा या आया, इसका ब्यौरा भी तो कोई दे!

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.